रूपा दास जी का मंदिर ,बगड |
रूपादास जी का मंदिर बगड के पश्चिम में जाटाबास में स्थित है | जिसे अस्तल के नाम से पुकारते है | रूपादास जी बहुत पहुचे हुए सिद्ध थे | उनकी मित्रता दरगाह के मिंया साहब से जग जाहिर थी| दोनों का मिलना नित्य के कार्यक्रम में शुमार था लेकिन दोनों एक दुसरे के स्थान पर नहीं मिलते थे बल्कि एक निश्चित समय पर अपने अपने स्थान से चलते और बीच रास्ते में मुलाक़ात करते थे |
रूपा दास जी पहले जयपुर में रहते थे लेकिन उनका राजा मान सिंह जी से मन मुटाव होने से वे यंहा बगड में आकर अपनी शरणस्थली बनायी | यंहा पर आज भी उनका वरदानी कुठला मौजूद है जिसे उन्होंने अस्तल के निवासीयों को प्रदान किया था | इस कुठले को देते हुए उन्होंने क़हा था की इसे तुम खोल कर मत देखना | नीचे से अनाज निकालते रहना ऊपर से झाँक कर मत देखना | इसका अनाज तुम्हारी जरूरते पूरी करता रहेगा | और कभी ख़त्म नहीं होगा | लेकिन कहते है की जिज्ञासावश वो लोग अपने आप को रोक नहीं पाए और कुछ दिनों बाद खोल कर देख लिया | लेकिन कुठला खाली मिला |
वरदानी कुठला |
एक बार यंहा बगड़ के नवाब ने अपनी नमाज में व्यवधान ना पड़े यह सोचकर रूपादास जी के पास आदेश भिजवाया की आप आज से शंख नहीं बजायेंगे | उसी दिन से नवाब और उसके परीवार को कब्ज हो गयी,किसी को भी मल मूत्र नहीं लगा | उनकी हालत खराब होने लगी तो वे सब पीर जी के यंहा गए तब पीर जी ने बताया की तुम ने संत रूपादास जी को शंख बजाने से मना किया | इस लिए तुम्हारी ये हालत हो गयी है तुम अभी जाकर उन्हें मना लो सब ठीक हो जाएगा | नवाब रूपा दास जी के पास आया और माफी माँगी तब उनकी कब्ज टूटी और मल त्याग हुआ |
उन्होंने जंहा समाधी ली वंहा अब एक मंदिर बना हुआ है | जिसमे सभी जाती के लोग अपने जात जडुले करते है,विवाह शादी में इनके गीत गाये जाते है |
संत रूपादास को शत शत नमन
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